जीवन की प्राथमिकता ( What are the priorities of life from first to last )

‘जान है तो जहान है’ बहुत प्रसिद्ध  कहावत है अर्थात जीवन होना या जीवन को किसी भी कीमत पर बचा के  रखना या जीवन को खत्म न हाने देना ही सर्वोच्च प्राथमिकता है। ‘आप’ सभी इस बात से पूर्णरूप से सहमत होंगे। दूसरे  शब्दों में कहें तो प्राथमिकता का आरम्भ जीवन के होने से ही है। प्राथमिकता का अर्थ है जरूरत के आधार पर चीजों या वस्तुओं का निर्धारण करना।
चलिये अब मान लेते हैं कि जीवन सुरखित हो गया। तब प्राथमिकता क्या होनी चाहिये या होगी। इस पर पुनः विचार करते हैं, सच बात तो यह है कि मृत्यु या मौत की सम्भावना मात्रा ही हमारे मन, मश्तिष्क को संज्ञाशून्य कर देती है, अर्थात हमारी सोचने व समझने की शक्ति खत्म हो जाती है और तर्कशक्ति का तो कहना ही क्या।
खाना, पीना ;जलद्ध, हवा ;वायुद्ध, पेड़-पौधे  ;भोजन के लिएद्ध समाज ;एक सुरक्षित वातावरणद्ध, र्ध्म ;आस्था पूर्ण जीवन के लिएद्ध, ध्न-सम्पदा, अथवा वाणी ;बोलनाया अभिव्यक्तिद्ध कुछ और भावनाए भी प्राथमिकताओं में आ सकती है। प्रथम पायदान पर जीवन सुरक्षा या सुरक्षित जीवन या सुरक्षा को रखा जाना चाहिये। अब दूसरी प्राथमिकता पर पुनः विचार करते हैं कि सुरक्षित जीवन के बाद क्या प्राथमिकता होनी चाहिये जो हमारे जीवन को विकसित करें या सुरक्षा चक्र को और मजबूत करें। मेरे विचार से इस पायदान पर र्ध्म की स्थिति अध्कि अनूकूल है कुछ लोग इससे सहमत होंगे और समाज का प्राथमिकता देंगे।
र्ध्म और समाज, बहुत कठिन विषय और विवादित भी क्योंकि दोनो शब्द हमें सभी को भाना में ले जाते हैं। मेरा मानना है कि भावना एक ऐसी नदी है जिसमें जाने पर आपकी तर्कशक्ति खत्म होकर कुतर्क शक्ति या पिफर हिंसा में परिर्वतित हो जाती है। बात सिपर्फ इतनी है कि र्ध्म एक प्रकार की आस्था है और तर्क से परे है। सीमाओं से परे है लेकिन समाज की अवधरणा अलग-अलग है। मुस्लिम ;इस्लामद्ध र्ध्म के 72 पिफकरे हैं और हर का अपना समाज है लेकिन र्ध्म एक है। उसी प्रकार इसाई र्ध्म में दो अलग समाज है जैसे कैथोलिक, प्राटेस्टेंट समाज या समुदाय। बहुत से लोग इसे का अलग-अलग मानते हैं। मेरा मनना है कि समाज और समुदाय एक ही विचार है अब आइये हिन्दू र्ध्म में समाज के ऊपर विचार करें जो कि अनन्त है जैसे, ब्राह्मण समाज, क्षत्रिय समाज, व्यापारी समाज, बाल्मीकि समाज, अभियन्ता समाज, चिकित्सक समाज, शिक्षक समाज, वषिक समाज, आदि-आदि। यहाँ पर समाज, क्षेत्रा, पेशा, प्रतिष्ठा, जाति, उपजाति किसी के नाम पर कुछ लोगों का समूह ही समाज हो सकता है। हिन्दू र्ध्म में समाज की अवधारणा बहुत लचीली है बिल्कुल हिन्दू र्ध्म की तरह। एक मूल अन्तर है, वह है समाज से बहिष्कृत करने का जो हिन्दू र्ध्म में नहीं है। मेरे विचार से समाज की अवधरणा एक मूर्त रूप है जबकि र्ध्म अवधरणा अमूर्त अर्थात शास्वत है, चिरंतन है, सांस्कृतिक से लगा है। अध्कितर लोगों के लिये र्ध्म जीवन जीने की प्रणाली है जैसे हिन्दू र्ध्म। हिन्दू र्ध्म को मनने वाले कहीं भी हों, किसी समाज के अंग हो लेकिन मूल रूप से वह उनके जीवन जीने के प्रकार से आप पहचान लेंगे कि वह हिन्दू र्ध्म के हैं। उसी प्रकार इस्लाम को मानने वाले किसी भी समाज के अंग होने होने के बाद भी कुछ विशेषताओं के कारण इस्लाम र्ध्म से जुडें दिखते हैं। यही सभी र्ध्मों के साथ है। विशेष बात यह है कि अलग-अलग र्ध्म को मानने वाले लोग किसी समाज के अंग हो सकते हैं मेरे विचार से र्ध्म ही ऐसा अमूर्त विचार है जो मनुष्य से सम्बन्ध्ति है। हाँ यह मानव से जुड़ा जरूर है लेकिन मानव र्ध्म कदापि नहीं है। मानव र्ध्म की संकलपना सिपर्फ व्यक्तियों को मूर्ख बनाने के लिए और अपना सवार्थ साध्ते हैं। आज तक मुण्े मानव र्ध्म का सच्चा अनुयायी नही मिला जो अवसर आन/ मिलने पर अपने हित या हितैषी को प्राथमिकता न देता हो। मैं अपने विचार से निश्चित रूप से र्ध्म को प्राथमिकता दूँगा। अब हम यह कह सकते हैं कि सुरक्षित जीवन र्ध्म के आश्रय में विकसित, पुष्पित, पल्लवित होता है। इसके साथ-साथ र्ध्म जीवन को सुरक्षा का आवरण भी प्रदान करता है।
अब सुरक्षित जीवन और र्ध्म तथा समाज के साथ अतिरिक्त सुरक्षा कवच वाला जीवन हमें मिल गया। क्या यही अभीष्ठ है। नहीं कदापि नहीं। प्राथमिकताएँ अब आरम्भ होती हैं। जो कि वास्तविक है, जिनके बारे में हम सभी 24 घंटे बात करते हैं और 365 दिन सोचते-विचारते है ‘पहली और दूसरी ;उपरोक्तद्ध के बारे में तो शायद ही कभी, किसी भारतीय-ने विचार किया हो। क्योंकि ये हमें मिली हुई है एक स्वतंत्रा और प्रजातांतत्रिक देश का नागरिक होने के कारण। यह हम भारतियों का परम सौभाग्य है। दुर्भाग्य से संसार के कुछ देशों में इन दोनो प्रकार की प्राथमिकताओं का अभाव है। उन देशों के नागरिक रात को सोने से पहले ये जरूर सोचते है कि कल का सूरज देख पायेंगे? क्या इसी तरह हम कल भी अपने धर्मिक रीतियों का पालन कर सकेंगे? ;सूडान, पाकिस्तान, चीन, द. कोरिया आदिद्ध जैसे भोजन, जल, वायु, आश्रय, स्वस्थ वातावरण, व्यवसाय, रोजगार, जीवन यापन के साध्न आदि।
आरम्भ की तीन आवश्कताएँ भोजन, जल, वायु सभी प्राणियों की प्राथमिकताएँ हैं, लेकिन मनुष्य या मानव होने के कारण हम इन सभी वस्तुओं के लिए अन्य प्राणियें और वनस्पतियों पर निर्भर हैं। सभी प्राणी अपने भोजन के लिए प्रत्यख या अप्रत्यक्ष रूप से वनस्पतियों पर ही निर्भर है। वनस्पतियाँ अपने भोजन के लिए जल, एवं वायु पर निर्भर हैं। अतः जल और वायु अध्कि प्राथमिकता वाली वस्तु है। अब देखिये जल के बिना भी हम सभी प्राणी कुछ देर तक जीवित रह सकते हैं परन्तु वायु के अभाव या अनुपस्थिति में जीवन की कल्पना भी नहीं कर सकते हैं। प्राणी तो प्राण्ी है वनस्पतिँ भी खत्म हो जायेंगी। जीवन ही समाप्त हो जायेगा हमारे सौर मण्डल के कुछ ग्रह/उपग्रह इसके उदाहरण हैं। जहाँ इन्हीं दोनों वस्तुओं के अभाव में जीवन नहीं है। अतः अब सभी वास्तविक प्राथमिकताओं में वायु और स्वच्च वायु निर्विवाद सर्वोपरि है। या कहें कि स्वच्च वायु सर्वोच्च प्राथमिकता
हवा, पानी, खाना क्या प्राथमिकता  में ऊपर है और क्या नीचे, बहुत कठिन है ये जानना। कुछ लोगों की प्राथमिकता कुछ होगी और कुछ लोगों की दूसरी। तो किन इन सभी प्राथमिकताओं का सार ये है कि सभी चीजें जरूरी है और इनमें से किसी भी अनुपस्थिति संसार से मनुष्य व वनस्पति खत्म करने के पर्याप्त है। इन प्राकृतिक चीजों  के अतिरिक्त अन्य बहुत सी जीवन रक्षक चीजों की भी आवश्यकता होती है। इन सभी बातों में मनुष्य और पशु की आवश्यकताए समान है। वनस्पतियों के लिए मात्रा जल और वायु की ही आवश्यकता होती है। वनस्पतियाँ न केवल प्रकृति में अपना भोजन बनाने के लिए समर्थ है बल्कि अन्य जीवों के लिए भोजन को उत्पन्न, पैदा करती हैं और इस संसार के वातावरण को भी जीवन के अनुकूल बनाती है। अब पुनः जीवन की प्राथमिकताओं पर विचार करें तो पायेंगे कि वनस्तियों का स्थान जीवन में सर्वोपरि अर्थात सबसे ऊपर है। वनस्पतियाँ हमें यानि मनुष्य को स्वस्थ वातावरण और भोजन देती है। क्या जीवन की प्राथमिकता यही हवा, पानी और भोजन है। कदापि नही, ये दूषित हवा, दूषित पानी और दूषित वातावरण रहे है। यहाँ तो सदैव हवा, पानी, व वनस्पतियों की ही नही मिट्टी, पत्थर तक की पूजा की जाती है। इसके पीछे विचार यही कि हम सभी मनुष्यों को सदैव शु( वातावरण व जीवनोपयोगी चीजें सदैव उपलब्ध् रहें। प्रदूषण सदैव हमारे पूर्वजों के विचार में था और उसे दूर करने का एकमात्रा उपाय, वनस्पतियों, वृक्षों व पौधें का संरक्षण भी उन्हें ज्ञात था। हमारे पूर्वजों ने वनो व वनस्पतियों के संरक्षण के लिए उन सभी वनस्पतियों को पूजा प(ति से दिया। सभी प्रकार की वनस्पतियों का उनकी उपयोगिता के अनुसार पूजनीय स्थान दिया गया। कुछ वनस्पतियों की औपधि् भी उनके पूजनीय होने का एक मुख्य कारण है। यह बात पूर्णतः सत्य है कि वन व वनस्पतियों का क्षय ही पृथ्वी पर बढ़ते प्रदूषण का मूल कारण है। प्रदूषण को खत्म करने का एक मात्रा उपाय है वन एवं वनस्पतियों की वृ(। सरल भाषा में कहें तो वृक्ष, वन ही है अब  हम मनुष्यों के लिए आशा की किरण जो प्रदूषण को न्यून व खत्म कर सकते हैं। अभी तक हम केवल प्राकृतिक प्रदूषण के बारे में चर्चा कर रहे थे। हम सभी मनुष्यों के मानसिक प्रदूषण की चर्चा नहीं कर रहे हैं। अभी तक हम जिस प्रकार के प्रदूषण की बात कर रहे थे वो मनुष्य और पशुओं को समान रूप से प्रभावित करता है। लेकिन पशु कुछ समय तक प्राकृतिक , प्रदूषण से लड़ता है और अन्त में हारकर अपनी प्रजाति सहित इस संसार से विदा हो जाता है क्योंकि वो अपनी व्यथा नही व्यक्त कर सकता है। परन्तु हम सभी मनुष्य है, इस संसार की सर्वोतम रचना और हमसे यह आशा की जाती है कि इन सभी चुनौतियों का न केवल सामना करेंगे बल्कि इन सभी प्रकार के प्रदूषण जनित समस्याओं का हल भी निकालेगें। यह एक विचारणीय सत्य है कि प्रदूषण सभी के लिए अत्यन्त हानिकारक है लेकिन उसको खत्म करने के प्रयास हम सभी को करना होगा। और इनमें से अध्किंश प्रदूषण को खत्म करने के लिए वन और वन सम्पदा सर्वोतम औषध्हि। जब तक हम सुध्रगें नहीं, विचार नही करेंगे तो इसी प्रकार अपनी साथी प्रजातियों को लुप्त होते देखते रहेगे। सौभाग्य से वन हमारे पक्ष में है जो हर प्रकार से हमारी सहायता के लिए सदैर तत्पर है। अब मैं इस प्रकार कह सकता हूँ कि जीवन सुरक्षा के बाद सर्वोतम प्राथमिकता प्रदूषण निवारण की है। जिससे सभी प्राणियों को शु( हवा, पानी व भोजन यथानुरूप मिले।



‘जीवन एक कला लेकिन जीवन अनुकरणीय हो और दूसरे सभी के लिए आर्दश बन जाये ये सिपर्फ एक कलाकार सदृश मनुष्य ही जानता है। उन मनुष्य में सभी गुणों का समुचित समावेष होता है। वैसे मनुष्य को गुण प्राकृतिक हैं जो लगभग सभी में पाये जाते है लेकिन अध्कितर सो गुण किस  समय कितनी मात्रा में होना चाहिये उसे कलाकार रूपी मनुष्य भली भाँति जानता है। ज्ञान, जी हाँ ज्ञान ही वह अनमोल गुण है जो मनुष्य को पशु से और कलाकार रूपी मनुष्य को साधरण मनुष्य से अलग करता है। ज्ञान रूपी गुण जो जीवन का आधर है न केवल मनुष्यों को बल्कि पशुओं का भी। पशुओं में सिपर्फ जीवन रक्षा , और जीवन को चलाने का ज्ञान होता है, लेकिन मनुष्य में ज्ञान ही वह गुण है जो जीवन की प्राथमिकताओं को निर्धरित करता है। ज्ञान के अभाव में मनुष्य एक मशीन या यंत्रा की तरह हो जाता है। साधरण भाषा में कहें तो ज्ञान के अभाव में मनुष्य मशीन यंत्रा की तरह होता है तथा ज्ञान की न्यूनता हमें पशुता की तरपफ ले जाती है और ज्ञान की तार्किक सर्म्पूणता ही मनुष्य को महान कलाकार रूपी मनुष्य या देवत्व की ओर ले जाती है। ज्ञान ही हमें सोचने, विचारने करने और तर्कशक्ति देता है कि मनुष्य के जीवन में ध्न, सम्पत्ति, शिक्षा, शक्ति आदि क्या आवश्यकता है और कितनी आवयकता है। ध्न का अर्जन, व्यय, संचय और उपयोगिता कितना होना चाहिये। ध्न की आवश्यकता क्या है। ज्ञान ही दर्शन है, ज्ञान ही संस्कृति है तथा ज्ञान ही र्ध्म है। ज्ञान ह हमें यह बताता है कि हमें जीवन में किन भौतिक चीजों, वस्तुओं का कितना महत्व देना चाहिये। ज्ञान ही हमारे अन्दर विवेक को जन्म देता है। जो हमारी हर प्रकार की सांसारिक गतिविध्यिं व वस्तुओं के बारे में विचार पैदा करता है।

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